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श्री गणेश पंचरत्न स्तोत्र का पाठ करने से हर मनोकामना होगी पूर्ण
डॉ श्रद्धा सोनी
श्री गणेश पंचरत्न स्तोत्र
गणेश चतुर्थी गणेश जी के साधना के लिए सर्वाेत्तम माना गया है। इस 10 दिनोें की आराधना से भगवान गणेश जी साधक को सर्व सिद्धि तथा मनोवांछित फल का वरदान देते हैं।
प्रातः काल में स्नान ध्यान करके श्री गणेश पंचरत्न स्तोत्र का पाठ करने से जातक की हर मनोकामना पूर्ण होती है। आदि गुरू शंकराचार्य द्वारा निर्मित इस स्तोत्र के महत्व अनन्य हैं।
श्री #गणेश #पंचरत्न स्तोत्र
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मुदा करात्त मोदकं सदा विमुक्ति साधकम् ।
कलाधरावतंसकं विलासिलोक रक्षकम् ।
अनायकैक नायकं विनाशितेभ दैत्यकम् ।
नताशुभाशु नाशकं नमामि तं विनायकम् ॥ १ ॥
नतेतराति भीकरं नवोदितार्क भास्वरम् ।
नमत्सुरारि निर्जरं नताधिकापदुद्ढरम् ।
सुरेश्वरं निधीश्वरं गजेश्वरं गणेश्वरम् ।
महेश्वरं तमाश्रये परात्परं निरंतरम् ॥ २ ॥
समस्त लोक शंकरं निरस्त दैत्य कुंजरम् ।
दरेतरोदरं वरं वरेभ वक्त्रमक्षरम् ।
कृपाकरं क्षमाकरं मुदाकरं यशस्करम् ।
मनस्करं नमस्कृतां नमस्करोमि भास्वरम् ॥ ३ ॥
अकिंचनार्ति मार्जनं चिरंतनोक्ति भाजनम् ।
पुरारि पूर्व नंदनं सुरारि गर्व चर्वणम् ।
प्रपंच नाश भीषणं धनंजयादि भूषणम् ।
कपोल दानवारणं भजे पुराण वारणम् ॥ ४ ॥
नितांत कांति दंत कांति मंत कांति कात्मजम् ।
अचिंत्य रूपमंत हीन मंतराय कृंतनम् ।
हृदंतरे निरंतरं वसंतमेव योगिनाम् ।
तमेकदंतमेव तं विचिंतयामि संततम् ॥ ५ ॥
महागणेश पंचरत्नमादरेण योஉन्वहम् ।
प्रजल्पति प्रभातके हृदि स्मरन् गणेश्वरम् ।
अरोगतामदोषतां सुसाहितीं सुपुत्रताम् ।
समाहितायु रष्टभूति मभ्युपैति सोஉचिरात् ॥
इति श्री शंकराचार्य विरचितं श्री महागणेश पञ्चरत्नं संपूर्णम्
इसके भावार्थ इस प्रकार हैं –
मै भगवान श्री गणेश को विनम्रता के साथ अपने हाथों से मोदक प्रदान करता हुँ जो मुक्ति के प्रदाता हैं। चंद्रमा जिसके सिर पर मुकुट के समान विराजमान हैं जो राजाधिराज हैं जिन्होंने गजासुर नाम के हाथी दानव का वध किया था और सभी लोगोें के पापों का विनाश कर देते हैं ऐसे गणेश जी की पूजा करते हैं।। 1।।
मैं उस भगवान गणेश जी पर सदा ध्यान अर्पित करता हुँ जो समर्पित नहीं हैं, जो उषा काल की तरह चमकते हैं जिसे सभी राक्षस एवं देवता सम्मान करते हैं, जो भगवानों में सर्वोत्तम हैं।।2।।
मैं अपने मन को उस चमकते हुए भगवान गणपति के समक्ष झुकाता हुँ जो संसार के सभी खुशियों के प्रदाता हैं, जिन्होंने गजासुर दानव का वध किया था, जिनका बड़ा पेट है, हाथी के तरह सुन्दर चेहरा है, जो अविनाशी हैं, जो क्षमा को भी क्षमा करते हैं और खुशी और प्रसिद्धि प्रदान करते हैं, और बुद्धि के प्रदाता हैं।।।3।।
मैं उन हाथी जैसे भगवान की पूजा करता हुँ जो गरीबों का दुख-दर्द दूर करते हैं जो ओम का निवास है, जो भगवान शिव के पहले पुत्र हैं, जो परमपिता परमेश्वर के शत्रुओं का विनाश करने वाले हैं, जो विनाश के समान भयंकर हैं, जो एक गज के समान दुष्ट हैं और धनंजय हैं और सर्प को अपने आभूषण के रूप में धारण करते हैं।।4।।
मै सदा उस भगवान को प्रतिबिंबित करता हुँ जिनके चमदार दन्त हैं, जिनके दन्त बहुत सुन्दर हैं, जिनका स्वरूप अमर और अविनाशी है, जो सभी बाधाओं को दूर करते हैं, और जो हमेंशा योगियों के दिल में वास करते हैं।।5।।
जो व्यक्ति प्रातःकाल में इस स्तोत्र का पाठ करता है, जो व्यक्ति भगवान गणेश पांच रत्न अपने शुद्ध हृदय मंें याद करता है तुरंत ही उसका शरीर दाग-धब्बों से मुक्त होकर जीवन स्वस्थ हो जायगा, वह शिक्षा के शिखर को प्राप्त करेगा, लम्बा जीवन शांति और सुख के साथ आध्यात्मिक एवं भौतिक समृद्धि के साथ सम्पन्न हो जायेगा।